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माता कुमाता क्यों हो गयी ?

अभी-अभी जन्माष्टमी का उत्सव बीता है, वो उमंग बीता है  जिसमे हर माँ अपने  बच्चों को कृष्ण और राधा बनाकर उन्हें स्कूल भेजती दिखी,  कोई मंदिर में पूजा  करती नज़र आयीं। ये तस्वीरें उस कहावत को सच करती दिखती है  जिसमे कहा जाता है की  'पूत कपूत हो सकता है लेकिन माता कभी कुमाता नहीं होती।' ये सच भी है। हमारे  देश में माता का स्थान सबसे ऊपर माना गया है, खुद भगवान से  भी ऊपर। यशोदा और  कौशल्या माता के वक़्त से आज मेरी माँ तक, माँ के चरणों में ही  पूरा संसार बसता  है। दुर्गा पूजा के वक़्त जब लाउडस्पीकर पर माँ का दिल बजता  है तो आज भी हमारा  दिल उस माँ के त्याग और प्यार को देख कर कलेजा फट जाता है।  पर आज वक़्त और जमाना  बदला है, लेकिन बदले वक़्त में कुछ माँ हत्यारिन होगी, समाज पर  दाग और माँ शब्द  पर कलंक होगी, शायद ही किसी ने ऐसा सोचा होगा। पर  इन्द्राणी मुखर्जी ऐसी ही माँ  है। ऐसी महिला जो माँ तो क्या हम महिलाओं के लिए भी  शर्मिंदगी का कारण है।  इन दिनों 24 घंटे न्यूज़ चैनलों पर दिखने वाली और अखब...