माता कुमाता क्यों हो गयी ?

अभी-अभी जन्माष्टमी का उत्सव बीता है, वो उमंग बीता है जिसमे हर माँ अपने बच्चों को कृष्ण और राधा बनाकर उन्हें स्कूल भेजती दिखी, कोई मंदिर में पूजा करती नज़र आयीं। ये तस्वीरें उस कहावत को सच करती दिखती है जिसमे कहा जाता है की 'पूत कपूत हो सकता है लेकिन माता कभी कुमाता नहीं होती।'
ये सच भी है। हमारे देश में माता का स्थान सबसे ऊपर माना गया है, खुद भगवान से भी ऊपर। यशोदा और कौशल्या माता के वक़्त से आज मेरी माँ तक, माँ के चरणों में ही पूरा संसार बसता है। दुर्गा पूजा के वक़्त जब लाउडस्पीकर पर माँ का दिल बजता है तो आज भी हमारा दिल उस माँ के त्याग और प्यार को देख कर कलेजा फट जाता है। 
पर आज वक़्त और जमाना बदला है, लेकिन बदले वक़्त में कुछ माँ हत्यारिन होगी, समाज पर दाग और माँ शब्द पर कलंक होगी, शायद ही किसी ने ऐसा सोचा होगा। पर इन्द्राणी मुखर्जी ऐसी ही माँ है। ऐसी महिला जो माँ तो क्या हम महिलाओं के लिए भी शर्मिंदगी का कारण है। इन दिनों 24 घंटे न्यूज़ चैनलों पर दिखने वाली और अखबारों की सुर्खियां बनकर छपने वाली इन्द्राणी के नाम और उसके किस्सें अब हर आमो- खास की जुबान पर है। इन्द्राणी ने कितनी शादियां की या वो कैसे शोहरत के शिखर पर पहुंचती गयी, ये किसी मनोहर कहानी से कम नहीं है। लेकिन ये अब भी कोई समझ नहीं पा रहा की उसने अपनी बेटी की हत्या कैसे कर दी। कैसे कोई भी माँ अपनी ही बेटी को जान से मार सकती है। एक बच्चे को 9 महीने तक अपनी कोख में रखने के बाद माँ उसे जन्म देती है, और मातृत्व का बोध दुनिया का परम सुख मन जाता है। फिर कैसे एक माँ का जिगर इस बात की दुहाई दे सकता है की अपनी शोहरत की खातिर वो अपनी बेटी का गला घोंट दे। क्या पैसे और पावर में इतनी ताकत हो सकती है की वो एक माँ में अपनी बेटी की हत्या करने की ताकत भर सके। शायद नहीं।
माँ त्याग की सबसे बड़ी मूरत होती है। लेकिन कलयुगी माँ भी एक कड़वी हकीकत है जो इन्द्राणी बनकर सबके सामने आयी है। पर इन्द्राणी की कहानी सिर्फ माता के कुमाता होने की कहानी भर मात्र नहीं है। बल्कि वो एक कलंक है, जो सारी महिला जात को सर्मशार कर
रही है। पहले जब कोई कहता था की नारी के कितने रूप होते हैं तो ये सकारात्मकता का प्रतीक होता था। लेकिन अब उन रूपों में कुछ ऐसे स्वरुप भी उभरे हैं जिसपर हममें से कोई गर्व नहीं कर सकता। न तो सोहरत की भूखी महिलाएं हमारी संस्कृति की पहचान रही है, न
एक की जगह बहु-शादियों का प्रचलन रहा है, और ना ही हत्यारिन माँ समाज की कल्पनाओं में रही है। पर अब ये हमारे ही बीच हो रहा है। मैं खुद एक महिला हूँ, लेकिन ये कह सकती हूँ की आज वो जमाना नहीं रह गया, जब हर महिला को लोग गंगा की तरह पवित्र माने, वो वक़्त नहीं रह गया जब कुछ गलती में समाज सीधे महिला को क्लीन-चिट देकर हर मामले में  पुरुषों पर आरोप लाद दे। बात बुरी
लगे तो माफ़ कीजियेगा, लेकिन हालत ऐसे ही हो गए हैं। 
सोशल पार्टियां में सेलिब्रिटी बनना सोशल साइट पर बटरफ्लाई , आजकल लड़कियों - महिलाओं की चाहत आर महत्वाकांक्षाएं कई बार गलत रस्ते पकड़ लेती है कई बार उसका खामियाज़ा खुद उन्हें ही भुगतनी पड़ती है। जैसे- जैसे तकनीक बड़ी और दुनिया छोटी हो रही है , तो फेस बुक से व्हाट्सप्प तक अजनबियों से दोस्ती और चैटिंग से बात बनाने की कोशिश होती है पर असल में और बिगड़ जाती है। और ऐसी ही बिगड़ी बानगी कभी कभी इन्द्राणी बनकर सामने आती है। हालाँकि बात इतनी नहीं बिगड़ी की स्तिथि को संवारा नहीं जा सके, पर इसकी जिम्मेदारी सभी महिलाओं की सामूहिक तौर पर है। ये समझना होगा की हम कितने भी फॉरवर्ड हो जाये, लेकिन हमारी संस्कृति में इन्द्राणी जैसी माँ या उसके किस्सों के लिए रत्ती भर भी जगह नहीं है। हर कोई ये समझ जाये तभी हम गर्व से कहने के हकदार होंगे की जहाँ महिलाओं की इज़्ज़त होती है वहीँ ईश्वर वास करते है।

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